

तुमने एक पहाड़ बनाया, नन्हें हाथों से
धुंधली खिड़की पर, एक नक़्शा जैसे।
धीरे-धीरे गिरती बर्फ़, फीका आसमान
पटरी के पार, एक शांत जहान।
शब्दों की ज़रूरत नहीं, बस जमी हुई रोशनी
सफेद चादर में छिपा एक छोटा सपना कहीं।
नन्हा पहाड़, शांत और गर्वित
इस ऊँघते शहर को देखता साक्षी।
तेरी उम्मीदें कागज़ी जहाज़ों में थीं
सर्दियों की बारिश में उड़ती नमीं।
सड़कें थीं ख़ामोश, सांझ पास आई
तुमने एक गीत गुनगुनाया, जो मुश्किल से सुनाई दी।
कदमों के निशान बर्फ़ में खो गए
वहीं कहीं तेरा नन्हा पहाड़ उग आया।
हर बच्चे के भीतर होते हैं पहाड़
कुछ इतने छोटे, कि बड़े नहीं देख पाते।
पर फीके नीले मौन में
वो छोटी सी चोटी तेरी थी, सिर्फ़ तेरी।
नन्हा पहाड़, कोमल और उज्ज्वल
रात के पार कहीं उठता हलचल।
अब भी जब दिन दूर लगते हैं
मुझे पता है — तेरे पहाड़ अब भी यहीं हैं।
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